Friday, August 21, 2009

ज़रा सोंचिये... आपका आँगन भी सुना है?

बहन सोनल के ब्लॉग पर उनकी लिखी कविता "सुनी कलाई" पढ़ी. कहीं न कहीं मेरे मन को कहीं अन्दर छू गई और मुझे भी लिखने को मजबूर किया।
 
क्यों आज अकारण ही आज एक घर के कई सारे घर होते जा रहे है? क्यों आज हम अकेले तन्हा रहने को मजबूर है? क्यों हर त्यौहार सुना-सुना गुजर जाता है? क्यों राखियों पर बहने भाई को सिर्फ याद ही कर पति है? जवाब तो नहीं है मेरे पास इन सवाल का बस कुछ मन की भडास है जो निकाल दिया मैंने आप लोगों के सामने. मार्ग-दर्शन जरूर कीजियेगा... पढने के लिए यहाँ क्लिक करें...

Thursday, August 20, 2009

उधार की जिन्दगी

हर बात कुछ याद दिलाती है....
हर याद कुछ मुस्कान लाती है....
कौन नहीं चाहता खुशियों को पास रखना अपने...
पर कहाँ वो हर पल साथ रह पाती है.....

समय का आभाव भी बहुत है जिन्दगी में....
भूल गए पलों को पैसो की बंदगी में.....
पर साथ तो अतीत का भी चाहिए...
और कम समय और शब्द कम है जिन्दगी में.....

रात से कुछ पल उधार ले....
कोशिश की रहने की उधार ले.....
जो दिन भर की जद्दोजहत के बाद बचे....
बनी उनसे कविता शब्द उधार ले......

ज़रा सोंचिये.... भूखे पेट भजन नहीं होती

दो दिनों पहले मैंने अपने ब्लॉग "कुछ बात" पर लिखा था "बिना तिरंगे की स्वतंत्रता"... भाई इंदर ने सबसे पहले अपने बहुमूल्य विचार दिए और मुझे बताया कि "भूखे पेट न भजन होती है और न देश-भक्ति". बस बात मेरे दिल को छू गयी और बैठ गया लिखने उनके समर्थन में और अपना एक नया विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ.

आंकडों पर अगर गौर करूँ तो अपने देश में सबसे ज्यादा मोबाइल और फ़ोन का इस्तेमाल साल के पहले दिन अर्थात नए साल पर होता है, फिर वैलेंटाइन डे, क्रिस्त्मस (जबकि देश में इसाईओं कि संख्या नगण्य है. क्रिसमस हमारे देश में क्रिस्चन से ज्यादा हिन्दू मानते है), मदर डे, फादर डे, रोज़ डे, फ्रेंडशिप डे और न जाने कौन कौन से डे पर होता है. हर साल मोबाइल कंपनियां इस दिन SMS और कॉल से अरबों का कारोबार करती है. न्यू इयर आ रहा है हम रात के बारह बजे से ही लग जाते है एक दुसरे को सन्देश भेजने में, बधाई देने में... वैलेंटाइन डे है और अपनी प्रेमिका को सबसे पहले सुभकामना न दी तो समझो हो गयी सामत, अपने माता-पिता का जन्मदिन याद हो न हो हमें फादर डे और मदर डे जरूर याद रहता है. अब इन सब भूखे पेट वालों से पूछना चाहूँगा स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस पर कीटों को बधाई सन्देश भेजते है??? सन्देश तो छोड़ देता हूँ अपने ही घर में कितनो को सुभ्कम्मना देते है??? ओह बेचारे कहाँ से बधाई देंगे इन्हें उसी समय भूख जो लग आती है...

हर साल हमारे देश में अरबों-खरबों रुपये खर्च होते है धर्म के नाम पर. कभी गणपति होती है तो कभी दही-हांडी. फिर दशहरा, दुर्गा पूजा दिवाली, ईद, छठ, और न जाने कितने अनगिनत पर्व त्यौहार. सब लोग हर्षो-उल्लास के साथ इन सब पर्वों को मानते है. दिल खोल कर हम पुरे देश के भूखे लोग खर्च करते है पर जब बात देश के महापर्व कि आती है तो कमबख्त ये भूखा पेट.

रोज न जाने कितने ही लोग कितने ही रुपयों का सदुपयोग सिगरेट, शराब, गुटका जैसी चीजों के लिए खरीदते है पर जब स्वतंत्रता दिवस के दिन कोई छोटा बच्चा हमारे पास २ रुपये के छोटे-छोटे तिरंगे बेचने आता है हमें उसी वक्त अपने भूखे होने की याद हो आती है.

हम भूखे लोग कडोदों रुपये किसी मंदिर, मस्जिद, या फिर सिर्फ भगवान का मुकुट बनाने में खर्च देते है. बात आती है सिर्फ एक दिन तिरंगे को सलामी देने की हम भूख सताने लगती है.

हम भूखे पेट लोग.... लिखना तो और चाहता हूँ पर क्या करूँ अब मुझे भी लग आई है भूख...

सिर्फ एक गुजारिश है कृपया एक बार अब कोई भी काम करने से पहले सोंचियेगा कहीं हमारे भूखे पेट पर असर तो नहीं पड़ेगा न.... ढेर सारे पर्वो और डे मनाने से पहले सोंचियेगा कहीं इसे मनाने के चक्कर में हम भूखे तो नहीं रह जायेंगे...