मैं कभी मंदिर, मस्जिद या गिरजा नहीं जाता (श्रधा से, घुमने कई बार गया हूँ.) कभी उसके सामने मेरे हाथ नहीं जुड़े या सिर नहीं झुका जिसे लोग भगवान या उपरवाला कहते है. किसी धर्म और धर्म गुरु कोई नहीं मानता मैं.
मुझे भगवान, कोई तीसरी ताकत, आदि ऐसी बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं. पर ये सब कल तक की बातें थी. आज मैं शायद दुनिया का सबसे बड़ा आस्तिक हूँ. भगवान के अस्तित्व को मानने लगा हूँ मैं आज से. ऐसा कोई अचानक नहीं हो गया. कई सारी बातों और घटनाओं ने मुझे विश्वास करने पर मजबूर कर दिया है मुझे. मेरे ब्लॉग का शीर्षक देखकर ही आप सब लोग मेरी भावनाओं को समझ रहे होंगे. पर सवाल ये है कि मेरी २५ साल की जिंदगी में आज ऐसा क्या हो गया जो मैं भगवान के वजूद को मानने पर मजबूर हो गया.
लोगों के साथ बुरा होते तो आप लोगों ने भी देखा होगा, पर क्या बुराई कि हद देखी है? चलिए मैं आपको दिखता हूँ.... मिलवाता हूँ अपने एक मित्र से जिसके कारण मैं आज भगवान को मानने के लिए मजबूर हूँ.
ये छोटी सी तो नहीं पर बहुत बड़ी कहानी भी नहीं है. ओह ये कहानी नहीं हकीकत है. हकीकत मेरे दोस्त अविनाश (काल्पनिक नाम) की.... अविनाश के बारे में बहुत कुछ तो नहीं बता सकता (नहीं तो मेरा ये पोस्ट लम्बा हो जायेगा) सीधे-सीधे मुद्दे की बात पर आता हूँ. अविनाश जिसके साथ कभी अच्छा होते मैंने कभी नहीं देखा. बचपन में कई सारी पारिवारिक परेशानियाँ थी उसके जिसका नतीजा ये था कि उसने १३ साल की उम्र से ही शराब और सिगरेट को अपना सबसे करीबी दोस्त बना लिया (मुझसे भी ज्यादा). शतरंज और क्रिकेट में महारत हासिल थी उसे. पेंटिंग बनता तो लगता जैसे किसी ने डिजीटल कैमरा से फोटो खिंचा है. पर कहते है न सिर्फ कला और हुनर सब कुछ नहीं होती, किस्मत भी जरूरी है. उसके साथ भी कुछ ऐसा ही था. जब १०वि में था उसे उसकी पेंटिंग की एक्सिबिशन लगाने का कोलकाता से बुलावा आया था, पर उसके पिता के लिए उसकी बोर्ड की परीक्षा ज्यादा जरूरी थी. इसका नतीजा ये था अविनाश ने हमेशा के लिए ब्रश उठाने से मना कर दिया. २ साल के बाद उसके क्रिकेट शौक ने उसे स्टेट लेवेल की टीम तक पहुँचाया पर कमबख्त फिर वही एक्साम... इस बार उसकी १२वी का एक्साम तो सामने था पर परिवार का साथ नहीं. वैसे उसने क्रिकेट छोडा तो नहीं मोहल्ले लेवल तक खेलता रहा. हाँ फिर कभी उसे आगे बढ़ने का मौका भी नहीं मिला.
अविनाश की एक बहुत अच्छी दोस्त भी हुआ करती थी जिसे वो अपने शराब, सिगरेट और खुद से भी ज्यादा चाहता था (ये चाहत दोस्ती की चाहत ही थी, ज्यादा सोचने की जरूरत आप लोगों को नहीं पड़ेगी) उसकी दोस्त ने भी उसका हर वक़्त साथ दिया पर फिर वही किस्मत... एक बड़ी बीमारी के कारण उसकी दोस्त उसे हमेशा के लिए छोड़ कर भगवान के पास चली गयी और उसे छोड़ गयी अकेला. (वैसे उसके पास हम भी थे पर वो हमें उतना अपना नहीं मानता था जितना अपनी शराब और सिगरेट को). अविनाश एक लड़की से प्यार भी करता था.... सॉरी करता है. पर फिर वही उसकी बुरी किस्मत, वो जितना उससे मोहब्बत करता है वो लड़की उससे उतनी ही ज्यादा नफरत. कबी वो दोनों एक दुसरे के अच्छे दोस्त हुआ करते थे पर जैसे ही एक दिन अविनाश ने उस लड़की को अपनी दिल की बात बताई सब कुछ बदल गया. सारी दोस्ती ख़त्म हो गयी और अविनाश उस लड़की के लिए सबसे बुरा इंसान बन गया.
ये तो कुछ बड़े उदहारण थे (जैसा अविनाश कहता है) मैंने उसे हर दिन अपनी जिंदगी और अपने हालात से लड़ते, जूझते और फिर हर शाम हारते और टूटते हुए देखा है. इन सब के बावजूद लोगों ने कभी उसे उदास नहीं देखा. हमेशा हमने उसे उसकी जिंदगी जीते हुए ही देखा है. पर जो अभी दो दिन पहले हुआ उसके साथ उसके बाद तो मुझे भी लगता है कि इससे ज्यादा बुरा किसी के साथ कुछ और नहीं हो सकता.
अविनाश ने अपनी जिंदगी को हर पल लड़ा. उसका सपना था मालिक बनाने का न कि किसी और की कंपनी में कोई नौकर (मतलब उसे नौकरी करना पसंद नहीं था फिर भी करता था. पापी पेट का भी तो सवाल है) लगभग ४ साल की नौकरी के बाद उसने अपनी एक छोटी सी कंपनी की शुरात इसी दिवाली की. ये सोंच कर कि इस पावन मौके पर लक्ष्मी पूरी दुनिया को छोड़ कर सिर्फ उसके पास आएगी (पर उसे मालूम नहीं था उसके साथ थी उसकी बुरी किस्मत). कंपनी खोलने के सिर्फ ४ दिन बाद परसों रात उसकी कंपनी में उसकी बुरी किस्मत ने आग लगा दी. लगभग ८ लाख रुपये का उसका ऑफिस ८ मिनट में भगवान को प्यारा हो गया (शायद भगवान को एक ऑफिस की जरूरत होगी और उसका नया ऑफिस उन्हें पसंद आया होगा. आखिर दिवाली के दिन उसने शुरआत भी तो की थी).
अब इतना कुछ होने के बाद कैसे भगवान पर विश्वास न करूँ मैं? और अब ऐसे भी उसकी बुरी किस्मत उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती (बिगाड़ने के लिए उसके पास अब बचा ही क्या है). एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी सपने में किसी के लिए बुरा नहीं सोंचा. उसके साथ इतना बुरा होना क्या कोई तीसरी ताकत नहीं है? एक ऐसा व्यक्ति जिसने हमेशा दूसरो की मदद की उसके साथ इतनी घटनाएं क्या ये नहीं कहती कि भगवान का वजूद है इस दुनिया में? अब कैसे आखिर में भगवान के अस्तित्व को नकार दूँ?
मैं तो धन्यवाद देना चाहूँगा उपरवाले को जिसने मुझ नास्तिक को आस्तिक बनाने के लिए इतना कुछ किया. कहते हैं न भगवान जो करते है अच्छा करते है.... GOD MAKES EVERYTHING RIGHT....