कलम चलने को आज फिर,
शब्द मचलने को आज फिर मजबूर है
इस दप्ती दोपहरी में,
बारिश बरसने को आज फिर मजबूर है
सो चुके थे अरमान सारे,
जिंदगी भी थम चुकी थी
मौत के कई दिनों के बाद
ये दिल आज फ़िर जीने को मजबूर है....
Saturday, October 17, 2009
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